Kanshi Ram Biography: BSP Founder and Dalit Leader

Kanshi Ram - Indian Politician

काशी राम (15 मार्च 1934 – 9 अक्टूबर 2006) भारतीय राजनीति और समाज सुधार के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे, जिन्हें विशेष रूप से दलित और बहुजन समाज के उत्थान के लिए याद किया जाता है। वे बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के संस्थापक थे, जो उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में दलित राजनीति को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस विस्तृत नोट में, हम उनके जीवन, करियर, और विरासत का गहन विश्लेषण करेंगे, जिसमें उनके प्रारंभिक जीवन, राजनीतिक यात्रा, स्वास्थ्य चुनौतियों, और उनके द्वारा छोड़ी गई विरासत शामिल है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

काशी राम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रुड़की जिले के खवासपुर गांव के पिरथिपुर बंगाल में हुआ था। उनका परिवार रमदासिया सिख समुदाय से संबंधित था, जो अनुसूचित जाति का हिस्सा था। उनके पिता एक छोटे किसान और भूमिपति थे, जिन्होंने अपने आठ बच्चों (दो भाई और चार बहनें) को उच्च शिक्षा दिलाने पर जोर दिया। कांशीरम परिवार के सबसे बड़े और सबसे शिक्षित सदस्य थे, जिन्होंने सरकार कॉलेज, रुड़की से 1956 में बीएससी की डिग्री हासिल की।

प्रारंभिक करियर और सामाजिक सक्रियता

1958 में, काशी राम पुणे के रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक के रूप में नियुक्त हुए। यहाँ, उन्होंने जाति आधारित भेदभाव का अनुभव किया, विशेष रूप से 1965 में जब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के जन्मदिवस को अवकाश बनाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। इस घटना ने उन्हें सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय होने के लिए प्रेरित किया। 1964 में, उन्होंने अम्बेडकर की पुस्तक “जाति का विनाश” पढ़ी, जो उनके विचारों को गहराई से प्रभावित किया।

1971 में, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, और अल्पसंख्यक कर्मचारियों के कल्याण के लिए एक संगठन की स्थापना की, जो बाद में 1978 में बैम्सेफ (पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी महासंघ) के रूप में विकसित हुआ। बैम्सेफ का मोटो था: “शिक्षित करो, संगठित करो, आंदोलन करो।” 1976 में, उन्होंने दिल्ली में बैम्सेफ का पहला कार्यालय खोला।

1980 में, उन्होंने “अम्बेडकर मेला” (पदयात्रा) शुरू की, जो अम्बेडकर के विचारों को फैलाने का एक प्रयास था। 1981 में, उन्होंने दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (DS4) की स्थापना की, जो एक राजनीतिक मंच था। 1984 में, उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य दलितों, पिछड़ों, और अल्पसंख्यकों को राजनीतिक शक्ति प्रदान करना था।

राजनीतिक यात्रा और चुनावी सफलताएं

बीएसपी की स्थापना के बाद, कांशीरम ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। 1984 में, उन्होंने जनजगीर-चंपा, छत्तीसगढ़ से अपना पहला चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1988 में, उन्होंने इलाहाबाद से वी.पी. सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा और 70,000 वोटों से हार गए। 1989 में, उन्होंने पूर्वी दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ा और चौथा स्थान हासिल किया।

1991 में, उन्होंने इटावा से लोकसभा चुनाव जीता, जहां उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार को 20,000 वोटों से हराया। यह उनकी पहली बड़ी राजनीतिक जीत थी। 1996 में, उन्होंने होशियारपुर से लोकसभा चुनाव जीता और 11वीं लोकसभा के सदस्य बने। उनकी राजनीतिक रणनीति थी: पहली बार हार, दूसरी बार दृश्यता, तीसरी बार जीत।

स्वास्थ्य चुनौतियां और मृत्यु

काशी राम के स्वास्थ्य ने उनके जीवन के अंतिम वर्षों में गंभीर चुनौतियां पेश कीं। उन्हें डायबिटीज और उच्च रक्तचाप था। 1994 में, उन्हें हृदयाघात हुआ, और 2003 में, खून के थक्के के कारण मस्तिष्क स्ट्रोक हुआ। इसके बाद, वे दो साल तक बिस्तर पर रहे और 2004 में सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लिया। 9 अक्टूबर 2006 को, 72 वर्ष की आयु में, हृदयाघात से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, उनकी अंतिम क्रिया बौद्ध रीति से की गई।

अप्रत्याशित विस्तार: बौद्ध धर्म में परिवर्तन की योजना

काशी राम ने 2002 में बौद्ध धर्म में परिवर्तन की घोषणा की थी, जिसे वे 14 अक्टूबर 2006 को, डॉ. अम्बेडकर के परिवर्तन की 50वीं वर्षगांठ पर, 5 करोड़ समर्थकों के साथ करना चाहते थे। यह एक बड़े सामाजिक और धार्मिक क्रांति का हिस्सा था, लेकिन उनकी मृत्यु के कारण यह योजना पूरी नहीं हो सकी। यह उनके जीवन का एक अनोखा पहलू था, जो उनके अम्बेडकर से प्रेरणा को दर्शाता है।

विरासत और प्रभाव

काशी राम की सबसे बड़ी विरासत बीएसपी है, जो उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी मृत्यु के बाद, उन्होंने मायावती को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया, जो बाद में उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं। उनकी स्मृति में, कई पुरस्कार और योजनाएं उनके नाम पर नामित की गईं, जैसे कि काशी राम अंतरराष्ट्रीय खेल पुरस्कार (10 लाख रुपये), काशी राम कला रत्न पुरस्कार (5 लाख रुपये), और काशी राम भाषा रत्न पुरस्कार (2.5 लाख रुपये)। 15 अप्रैल 2008 को, उत्तर प्रदेश में एक जिला काशीराम नगर के नाम से नामित किया गया।

उनकी राजनीतिक रणनीति, जैसे “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी,” ने दलितों को सशक्त बनाने में मदद की, लेकिन मायावती के नेतृत्व में बीएसपी के विकास और उनके व्यक्तिगत जीवनशैली को लेकर विवाद भी रहे। कुछ लोगों ने उनकी विरासत को अम्बेडकर के आंदोलन को पुनर्जीवित करने के रूप में देखा, जबकि अन्य ने मायावती के नेतृत्व में पार्टी की दिशा पर सवाल उठाए।

तालिका: कांशीरम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं

वर्षघटना
1934पंजाब के खवासपुर गांव में जन्म, रमदासिया सिख परिवार में
1956बीएससी की डिग्री हासिल, सरकार कॉलेज, रुड़की से
1958पुणे में रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक के रूप में नियुक्त
1965डॉ. अम्बेडकर के जन्मदिवस को अवकाश बनाने की मांग को लेकर प्रदर्शन
1971नौकरी छोड़, कर्मचारी कल्याण संघ की स्थापना
1973बैम्सेफ की स्थापना
1976दिल्ली में बैम्सेफ का पहला कार्यालय खोला
1980अम्बेडकर मेला (पदयात्रा) शुरू
1981दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएस4) की स्थापना
1984बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की स्थापना
1991इटावा से लोकसभा चुनाव जीता
1996होशियारपुर से लोकसभा चुनाव जीता
1994हृदयाघात हुआ
2003मस्तिष्क स्ट्रोक, खून के थक्के के कारण
2004सार्वजनिक जीवन से संन्यास लिया
20069 अक्टूबर को हृदयाघात से मृत्यु, बौद्ध रीति से अंतिम क्रिया

निष्कर्ष

काशी राम का जीवन दलित और बहुजन समाज के लिए समर्पित रहा, और उनकी विरासत आज भी भारतीय राजनीति में महसूस की जाती है। उनकी मृत्यु के बाद भी, बीएसपी उत्तर प्रदेश में एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति बनी रही, और उनकी स्मृति में कई स्मारक और पुरस्कार स्थापित किए गए। उनकी बौद्ध धर्म में परिवर्तन की योजना और उनके द्वारा छोड़ी गई राजनीतिक रणनीतियां उनके व्यक्तित्व की गहराई को दर्शाती हैं।

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